August 12, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमहाभागवत [देवीपुराण]-अध्याय-81 ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ इक्यासीवाँ अध्याय कलियुग के मानवों का स्वभाव तथा भगवान् शंकर की उपासना और शिवनामसंकीर्तन की महिमा अथः एकाशीतितमोऽध्यायः श्रीवेदव्यासजैमिनिसंवादे श्रीमहादेवदेवर्षिनारदप्रश्नोत्तरकथनं श्रीमहादेवजी बोले — वत्स ! भगवान् शंकर की पूजा का माहात्म्य मुझसे भक्तिभाव तथा ध्यानपूर्वक संक्षेप में सुनिये ॥ १ ॥ कलियुग में सभी मानव सदा धर्महीन, पापाचारी तथा सत्यधर्म से पराङ्मुख हो जायँगे। वे नित्य परायी स्त्रियों में आसक्त, दूसरे से ईर्ष्या करने वाले, दूसरों की निन्दा में लगे हुए तथा दूसरे के धन का अपहरण करने वाले होंगे। कलियुग में वे सदा गुरुभक्तिविहीन, गुरु की निन्दा – परायण, अपने-अपने कर्म से विमुख तथा धन के लोभी होंगे ॥ २-४ ॥ सभी द्विज सदा शूद्र की तरह आचरण वाले, वेद, तप तथा योगाभ्यास से रहित हो जायँगे ॥ ५ ॥ वत्स! कलियुग में [ मनुष्य ] शिश्नोदरपरायण (कामुक और उदरपूर्ति में संलग्न) हो जायँगे। सभी स्त्रियाँ पतिभक्तिविहीन होंगी। वे प्रायः भ्रष्ट तथा अपनी सास से द्वेष करने वाली होंगी ॥ ६१/२ ॥ पृथ्वी पर बहुत थोड़ा अन्न उत्पन्न होगा और लोग अन्नविहीन हो जायँगे । करग्रहण में निरन्तर संलग्न राजा लोग म्लेच्छ हो जायँगे। सदा सज्जनों की हानि होगी तथा दुर्जनों की उन्नति होगी ॥ ७-८ ॥ मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार के घोर कलियुग में भगवान् शिव का पूजन पापबुद्धि मनुष्यों के लिये भी मुक्ति प्रदान करने वाला होगा ॥ ९ ॥ जो व्यक्ति शिवशक्तिस्वरूप [ भगवान् शंकर के ] पार्थिव लिङ्ग का निर्माण करके संयतेन्द्रिय होकर उसका पूजन करता है, उसे कलि बाधा नहीं पहुँचाता। मुनिश्रेष्ठ! मैं यह ध्रुव सत्य कहता हूँ कि इस कलियुग में थोड़े-से साधनों से भी सम्पन्न होने वाले भगवान् शंकर के पूजन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है ॥ १०-११ ॥ मिट्टी की मूर्ति, बिल्वपत्र से पूजा, बिना प्रयत्न से साध्य मुख का वाद्य ( गाल बजाना) और इन सबसे प्राप्त होने वाला फल है – भगवान् शिव का सायुज्यमुक्तिलाभ। इसलिये अकिंचन भक्तों के लिये भगवान् विश्वनाथ ही एकमात्र देवता हैं ॥ १२ ॥ इस कलियुग में भगवान् शिव की आराधना के समान कोई सत्कर्म नहीं है । शाक्त, वैष्णव अथवा शैवों को पूर्व में भगवान् शंकर की पूजा करके तब भक्तिपूर्वक अपने इष्ट देवता की पूजा करनी चाहिये । नारद ! प्रारम्भ में बिल्वपत्रों से शिवलिङ्ग की पूजा करनी चाहिये; क्योंकि भगवान् शिव की पूजा के बिना किया हुआ सभी कर्म शूद्र द्वारा अनुष्ठित कर्म के समान हो जाता है ॥ १३-१४ ॥ जो पापी मनुष्य अहंकार अथवा अज्ञान से इस क्रम का उल्लंघन करता है, उसका अध: पतन हो जाता है और उसकी पूजा निष्फल होती है ॥ १५ ॥ जो सर्वलोकेश्वरेश्वर भगवान् महादेव का पूजन करता है, उसकी सारूप्यमुक्ति हो जाती है तथा उसका पुनर्जन्म नहीं होता ॥ १६ ॥ जो मनुष्य सद्भक्तिपूर्वक सर्वदेवमय भगवान् शिव की पूजा करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर शिवलोक प्राप्त करता है ॥ १७ ॥ जो मानवश्रेष्ठ भगवान् शंकर को पाद्य समर्पित करता है, वह भी पाप से मुक्त होकर स्वर्गलोक प्राप्त करता है ॥ १८ ॥ मुने! भगवान् शम्भु को अर्ध्यादि जो कुछ पूजनोपचार समर्पित किये जाते हैं, वे सब शिवलिङ्ग के ऊपर भी थोड़े-थोड़े चढ़ाने चाहिये ॥ १९ ॥ महाबुद्धे! भगवान् शंकर का निर्माल्य और प्रसाद अग्राह्य हो जाता है, उसका भक्षण नहीं करना चाहिये। विष्णुभगवान् का प्रसाद ग्राह्य होता है, अन्य का नहीं। उसे ग्रहण करने से वह भगवान् विष्णु का कोपभाजन होता है ॥ २० ॥ शालग्रामशिला स्पर्श से वह शिवनिर्माल्य भी ग्राह्य हो जाता है तथा अनादि लिङ्गों (ज्योतिर्लिङ्गों आदि स्वयम्भू लिङ्गों)- ) – का निर्माल्य ग्रहण कर व्यक्ति शिवसायुज्य को प्राप्त करता है। मनुष्य भगवान् शिव का प्रसाद भक्षण करे और स्वयं शिवत्व को प्राप्त करे ॥ २१ ॥ नारद! जो व्यक्ति भक्तिभावपूर्वक अथवा भक्तिभावरहित भी भगवान् शंकर की पूजा करता है, वह यमराज के दण्ड का भागी नहीं होता, यह सत्य है, सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं है ॥ २२ ॥ भगवान् शंकर के लिङ्ग का अर्चन करके मानवश्रेष्ठ आरोग्य, अतुल आनन्द, संतति तथा पुष्टि की वृद्धि को प्राप्त करता है ॥ २३ ॥ मुने ! जो व्यक्ति भगवान् शंकर की संनिधि में भक्तिपूर्वक नृत्य करता है, वह दिव्य शिवलोक को प्राप्त कर दीर्घकाल तक आनन्दमग्न रहता है ॥ २४ ॥ जो मानव भगवान् शंकर की संनिधि में गीत- वाद्य से सेवा करता है, वह भगवान् शंकर के समीप रहकर उनके प्रमथों का स्वामी हो जाता है ॥ २५ ॥ मुने! जिस देश में भगवान् शिव की पूजा एवं भक्ति में परायण मनुष्य निवास करते हैं, गङ्गाविहीन होते हुए भी वह देश पुण्यतम कहा गया है ॥ २६ ॥ जो व्यक्ति बिल्ववृक्ष के मूल में भक्तिपूर्वक भगवान् शंकर का पूजन करता है, वह निश्चितरूप से हजारों अश्वमेधयज्ञ करने के समान फल प्राप्त करता है ॥ २७ ॥ जो व्यक्ति भगवती गङ्गा में भगवान् शंकर का बिल्वपत्रों से पूजा करता है, सैकड़ों पाप करने वाला होने पर भी वह मुक्ति को प्राप्त कर लेता है ॥ २८ ॥ जो श्रेष्ठ व्यक्ति काशी में अनिच्छा से भी भगवान् शंकर की पूजा करता है, उसे अन्त में स्वयं भगवान् महेश्वर मुक्ति प्रदान कर देते हैं ॥ २९ ॥ पवित्र भारतवर्ष में जो पुण्यक्षेत्र हैं वहाँ भगवान् विश्वेश्वर की पूजा करके मनुष्य पुनर्जन्म का भागी नहीं होता ॥ ३० ॥ हिमालय के दक्षिणभाग गङ्गासागर-सङ्गम तक जितना भी पवित्र देश है, वह सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है ॥ ३१ ॥ मुने! इस देश में भगवान् शंकर के पूजन के समान कोई श्रेष्ठ कर्म नहीं है, जो महापाप को हरने वाला पुण्यदायी तथा सभी प्रकार की आपत्तियों का निवारण करने वाला है ॥ ३२ ॥ महामुने ! अनेक शास्त्रों में मनुष्यों के पापों को हरने वाले असंख्य पुण्यदायक कर्म बताये गये हैं, उनमें भगवान् शंकर के पूजन, शिवनाम- संकीर्तन तथा भगवती दुर्गा के नाम संकीर्तन को विशेषरूप से उत्तमोत्तम जानना चाहिये ॥ ३३-३४ ॥ भगवती दुर्गा का पूजन एवं उसी प्रकार भगवान् राम के नाम [जप] – संकीर्तन तथा उनके गुणों के श्रवण और तीर्थों में भ्रमण को कलिकाल में पापनाश का श्रेष्ठ उपाय जानना चाहिये ॥ ३५ ॥ जो व्यक्ति भगवान् शम्भु के नामों को स्मरण कर वेद तथा शास्त्रों में बताये गये कर्म करता है, उसका किया हुआ कर्म अक्षय्यतम हो जाता है ॥ ३६ ॥ ‘शिव! विश्वनाथ ! विश्वेश ! हर ! गौरीपते ! आप प्रसन्न हों’ – इस प्रकार जो व्यक्ति एक बार भी कहता है, उसकी रक्षा के लिये उसके पीछे अपने प्रमथगणों के साथ वेगपूर्वक शूलपाणि भगवान् शिव शूल लेकर स्वयं दौड़ पड़ते हैं ॥ ३७-३८ ॥ महामते! सैकड़ों पाप करने वाला मनुष्य भी शिवनाम का स्मरण करते हुए शरीर को त्याग करके साक्षात् शिवसायुज्य को प्राप्त कर लेता है ॥ ३९ ॥ महामते ! जहाँ-कहीं रहकर जो व्यक्ति भगवान् शंकर का स्मरण करता है, वहीं सभी तीर्थों का निवास हो जाता है ॥ ४० ॥ मुनिश्रेष्ठ ! जो आपने पूछा, वह महापाप को हरनेवाला, पुण्यदायक तथा सभी प्रकार के परम मङ्गल को प्रदान करने वाला प्रसंग मैंने कह दिया । जो मनुष्य श्रद्धासहित इसको पढ़ता या सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर श्रेष्ठ पद को प्राप्त करता है ॥ ४१-४२ ॥ व्यासजी बोले — जैमिने ! इस खण्ड में देवर्षि नारद के द्वारा पूछने पर स्वयं भगवान् शिव ने इतना कहा, जो पुण्यदायक और परम शोभनीय है ॥ ४३ ॥ जो मानव भक्तिपूर्वक इसको पढ़ता या सुनता है, वह अभीष्ट भोगों को भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है ॥ ४४ ॥ महामते भगवान् शूलपाणि शंकर के द्वारा मुनीश्वर नारदजी के लिये कहा गया यह प्रसंग अत्यन्त गोपनीय और श्रेष्ठ है, जिसके घर में यह [ग्रन्थ] स्थित रहता है, उसे आपत्तियाँ कभी स्पर्श भी नहीं करतीं ॥ ४५ ॥ जैमिने! जो इस उत्तम आख्यान को भगवान् विष्णु के समीप भक्तिपूर्वक सुनाता है, उसी क्षण उसका पाप नष्ट हो जाता है ॥ ४६ ॥ इस परम आख्यान के श्रवण से अनेक करोड़ जन्म-जन्मान्तरों के सञ्चित पापपुञ्ज को भी त्यागकर [ मनुष्य ] मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ ४७ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीमहाभागवतमहापुराणके अन्तर्गत श्रीवेदव्यास- जैमिनि-संवादमें’ श्रीमहादेवदेवर्षिनारदप्रश्नोत्तरकथन’ नामक इक्यासीवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ८१ ॥ ॥ यह महाभागवत [ देवीपुराण ] नामक महापुराण समाप्त हुआ ॥ Content is available only for registered users. 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