श्रीगणपति-ध्यान- मंजरी

गणपति
सिन्दूराभं त्रिनेत्रं पृथुतरजठरं हस्तपद्यैर्दधानं
दन्तं पाशाङ्कुशेष्टान्युरुकरविलसद्बीजपूराभिरामम्।
बालेन्दुद्योतमौलिं करिपतिवदनं दानपूरार्द्रगण्डं
भोगीन्द्राबद्धभूषं भजत गणपतिं रक्तवस्त्राङ्गरागम् ॥

जो सिन्दूरकी-सी अंगकान्ति वाले और त्रिनेत्रधारी हैं; जिनका उदर बहुत विशाल है; जो अपने चार करकमलों में दन्त, पाश, अंकुश और वर-मुद्रा धारण करते हैं; जिनके विशाल शुण्ड-दण्ड में बीजपूर (बिजौरा नीबू या अनार) शोभा दे रहा है; जिनका मस्तक बालचन्द्र से दीप्तिमान् और गण्डस्थल मद के प्रवाह से आर्द्र है; नागराज को जिन्होंने भूषण के रूप में धारण किया है तथा जो लाल वस्त्र और अरुण अंगराग से सुशोभित हैं, उन गजेन्द्र-वदन गणपति का भजन करो।

एकाक्षरगणपति
रक्तो रक्ताङ्गरागांशुककुसुमयुतस्तुन्दिलश्चन्द्रमौलि-
र्नेत्रैर्युक्तस्त्रिभिर्वामनकरचरणो बीजपूरान्तनासः ।
हस्ताग्राक्लृप्तपाशांकुशरदवरदो नागवक्त्रोऽहिभूषो
देवः पद्मासनो वो भवतु नतसुरो भूतये विघ्नराजः ॥

वे विघ्ननाशक श्रीगणपति शरीर से रक्तवर्ण के हैं। उन्होंने लाल रंग के ही अंगराग, वस्त्र और पुष्पहार धारण कर रखे हैं । वे लम्बोदर हैं; उनके मस्तक पर चन्द्राकार मुकुट है; उनके तीन नेत्र हैं और हाथ-पैर छोटे-छोटे हैं; उन्होंने शुण्डाग्रभाग में बीजपूर (बिजौरा नीबू) ले रखा है; उनके हस्ताग्रभाग में पाश, अंकुश, दन्त तथा वरद (मुद्रा) सुशोभित हैं; उनका मुख गज के समान है और वे सर्पमय आभूषण धारण किये हैं । वे कमल के आसन पर विराजमान हैं और समस्त देवता उनके चरणों में नतमस्तक हैं; ऐसे विघ्नराजदेव आपलोगों के लिये कल्याणकारी हों ।

सिंहगणपति
वीणां कल्पलतामरिं च वरदं दक्षे विधत्ते करै-
र्वामे तामरसं च रत्नकलशं सन्मञ्जरीं चाभयम् ।
शुण्डादण्डलसन्मृगेन्द्रवदनः शखेन्दुगौरः शुभो
दीव्यद्रत्ननिभांशुको गणपतिः पायादपायात् स नः ॥

जो दायें हाथों में वीणा, कल्पलता, चक्र तथा वरद (मुद्रा) धारण करते हैं और बायें हाथोंमें कमल, रत्नकलश, सुन्दर धान्य- मंजरी एवं अभय मुद्रा धारण किये हुए हैं, जिनका सिंहसदृश मुख शुण्डादण्ड से सुशोभित है, जो शंख और चन्द्रमाके समान गौरवर्ण हैं तथा जिनका वस्त्र दिव्य रत्नों के समान दीप्तिमान् है, वे शुभस्वरूप (मंगलमय) गणपति हमको अपाय (विनाश ) – से बचायें ।

हेरम्बगणपति
मुक्ताकाञ्चननीलकुन्दषुसृणच्छायैस्त्रिनेत्रान्वितै-
नगास्यैर्हरिवाहनं शशिधरं हेरम्बमर्कप्रभम् ।
दृप्तं दानमभीतिमोदकरदान् टङ्कं शिरोऽक्षात्मिकां
मालां मुद्गरमङ्कुशं त्रिशिखिकं दोर्भिर्दधानं भजे ॥

हेरम्बगणपति पाँच हस्तिमुखों से युक्त हैं । चार हस्तिमुख चारों ओर और एक ऊर्ध्व दिशा में हैं। उनका ऊर्ध्व हस्तिमुख मुक्तावर्ण का है। दूसरे चार हस्तिमुख क्रमशः कांचन, नील, कुन्द (श्वेत) और कुंकुमवर्ण के हैं। प्रत्येक हस्तिमुख तीन नेत्रों वाला है । वे सिंहवाहन हैं। उनके कपाल में चन्द्रिका विराजित है और देह की कान्ति सूर्य के समान प्रभायुक्त है । वे बलदृप्त हैं और अपनी दस भुजाओं में वर और अभयमुद्रा तथा क्रमशः मोदक, दन्त, टंक, सिर, अक्षमाला, मुद्गर, अंकुश और त्रिशूल धारण करते हैं। मैं उन भगवान् हेरम्ब का भजन करता हूँ।

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